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Thursday 30 May 2013

KOI HAI SAATH


Well, writing after really a long time. Was entangled in earthly stuffs. You know, stuffs.......
Anyways, this new poem is in Hindi. Yeah, I love Hindi as much as English. You may be thinking that why an English writer like me venture into the realm of Hindi from time to time. The answer is, there are some things which are expressed best in Hindi and Hindi only. Okay then, hope you will enjoy it. And do not forget to leave your feedback. They really, really help me to improve.........

कोई है साथ

चला जा रहा था बस
 ना क्षितिज का ठौर
ना  किसी मंजिल का ठिकाना
बस चल रहा एक दिशा में
चेहरे पर क्या भाव थे
खुद मैं नहीं जनता
बस पाँव  ले जा रहे थे

दर्द ? हाँ, दर्द तो था
लेकिन कितना ?
खुद हँस रहा था इस सवाल पर
हताशा, जो पहले दिल पे छाई थी
अब तो मेरी दुनिया ही रंगी है उसमे
और ले-दे कर बची निराशा
वो तो इन दोनों की परम सहेली है
अंततः वो भी साथ हो ली मेरे

सोच कहाँ थी ?
विचार कहाँ थे ?
मस्तिष्क के पट पर
एक चलचित्र सी
चल रही थी दोनों की
जिसने  आँखों को
चौंधिया दिया था

इन्ही ख्यालों में
डूबता-उतराता
बस बढ़ते जा रहा था
रेत पर पैरों के निशान बनाते हुए

तभी  आभास हुआ
कोई साथ हो लिया है
आश्चर्यचकित, मैंने देखा उसे
यह भला कौन साथ हुआ
और साथ भी किसके
एक ऐसे इंसान के
जो आज शुन्य में
परिवर्तित  हुआ जा रहा है
जिसका वजूद ही एक त्रास है
उसके खुद के  लिए

खैर, जो भी है
उसकी मर्ज़ी
साथ देने को तो और कई थे
इस अभागे को मैं ही मिला
माहौल की नीरवता के वास्ते
मैंने ही आखिरकार पूछ लिया
कौन हो भाई तुम ?
और मेरे साथ क्यूँ हो लिए ?
वो इंसान  सिर झुकाए
मेरे साथ चलता रहा
और मुस्कुराकर बोला
भगवान्
हा! भगवान् ?!
यह अविश्वास नहीं था
मेरे मन में
बस नियति पे हँसा  था

अब मिले हो प्रभु
मैंने हँसते हुए प्रणाम किया
अब दर्शन दिए हैं ईश्वर ने
कहिये कैसे कृपा की

उसने, जो खुद को बता रहा था
भगवान्, सृष्टि-संचालक, दुखों का हर्ता,
मेरे कंधे पर हाथ रखा
और बोला मेरे कानों में
एक बार देखो अपने पीछे
खुद के पैरों के निशानों को
जो अथाह रेत में उभरे पड़े हैं

मैंने उसे अविश्वास से घूरा
क्या बोल रहा है यह ?
आज जब जिंदगी रूठ कर चली गयी
एक बेजान शरीर छोड़ कर
और तकदीर ने मुँह मोड़ा
तबाही का पैगाम  लिख कर
यह आया है मेरे पास
कहाँ था अब तक ?
जब इस विशाल संसार में
कोई नहीं था अपना कहने को
जब दुनिया ने त्याग किया था मेरा
बिना किसी  कसूर के
आप तब कहाँ थे हजरत ?
और आया भी है तो आज
अन्धकार की हमजोली बन कर

क्या चाहता है मुझसे ?
हाँ, पीछे पलटने को कह रहा था
देखूं भला क्या मंशा है इसकी
इस सोच के साथ
पीछे पलटा मैं

देखा, तो बस देखते रह गया
नीले आकाश के तले
और स्वर्णिम रेत में
उभरे थे निशान पाँव के
जगमगाते, झिलमिलाते
मेरी दृष्टि वहाँ पहुँच गयी
जो  शायद छुपी थी पहले

देखा की मेरे अच्छे दिनों में
जब मैं खुश रहने का आदि था
और एक अनजान उर्जा से
दिल उत्साहित रहता था
दो  जोड़ी पैरों के निशान थे
जो साथ में चले आ रहे थे

लेकिन  जल्दी ही वो नज़ारा दिखा
जिसने मुझे इस दशा में पहुँचाया
वक़्त,  वो वक़्त जिसने कमजोरी की
ऐसी परिभाषा लिखी
की मैंने खुद को
ख़त्म  करने में भी
असमर्थ पाया
और निश्चय ही वहाँ भी थे
पैरों के निशान
सिर्फ एक जोड़ी  में
दूसरा जोड़ा गायब था

अब  मुस्कुराने की बारी मेरी थी
पलटा मैं वापस
और कहा उस 'भगवान्' से
छोड़ तो तुमने भी दिया ही
जब मुसीबतों ने मुझे घेरा
बस  सुख के साथी बने रहे
क्या फर्क है भई तुम में
और उन बाकी सांसारिक जीवों में ?

यह क्या ?
फिर वही मुस्कराहट ?!
वही हृदय में
शूल की भाँती
लगती मुस्कराहट
इससे पहले मैं पूछता कुछ
वो फिर मेरे समीप आया
और जो कहा मुझसे
आज  भी शायद
स्तब्ध खड़ा हूँ मैं
वही का वही उसे सुनकर
कहा उसने
मैं तब भी साथ था
आज भी साथ ही हूँ
बस अंतर इतना सा है
तुम्हे बिठा  लिया
अपने  कंधे पर
यह पैरों के निशान
मेरे ही हैं
कारण ?
अब वह बताने की
शायद जरुरत नहीं

बिजली सी कौंध गयी
मेरी रगों में
झटके से उसकी ओर मुड़ा
पर अब भला
वह क्यूँ दिखने लगा
जब होश में आया
तो हाथ  खुद-ब -खुद
दिल पर पहुँचा
और यथार्थ की तहें
खुलती गयीं

अकेला ? और मैं ?
हा! फिर हँस  रहा था मैं
पागलों की तरह
जोर-जोर से
चिल्ला-चिल्ला कर

कैसे व्यक्त करता
मैं अपने उद्गारों को
आँखों में
जो सरिता उमड़  पड़ी थी
बस वही थी
मेरी श्रधांजलि

फिर चल पड़ा था
इस बार
एक ऐसे साथी के साथ
जो तब भी मेरे साथ होगा
जब मैं खुद के साथ
ना  रहूँगा.................


 

 








 





   





8 comments:

  1. you have beautifully described how one should not lose hope even in the darkest of time.You have struck the chord neatly with the ultimate realization of once purpose in life.....

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  2. Thanx bhaia. Your feedback is something for which I always look forward to............ :-)

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  3. is ajibogarib zindagi ka sundar shabdo me varnana Shubhang....

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  4. nice bhai bahut badhiya

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  5. Thanks bhailoge. khushi hui ye jaan kar ki aap logo ko accha laga.............. :-)

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  6. Though I have read this story before.... yet i loved reading it again.. The way u put the feelings... The mockery .. the sadness.. I felt the magic again which I felt long time ago in my 8th or so when i first heard this story !
    I have told vicky many times... I can never write like shubhang.

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  7. good time reading it..has power to drive positivism. Keep writing :)

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