P.S. : All the expressions and emotions in this poem are entirely the product of imagination from the poet's mind. With all due respect, please don't dare to relate them with his personal life!!
शायद हमें भी था
सुना था यारों की महफिलों में
दोस्तों की जमातों में
दीवानों के झुण्ड में
क्या होता है प्यार
लेकिन जिसने भी पुछा
गर्दन हिला कर साफ़ कहा
हम क्या जाने यार
शान से कहते थे उनसे
अपने को नहीं होने वाला
हम तो यूँ ही अच्छे हैं
खुद हैं इस दिल का रखवाला
लेकिन कुछ समय से शक है
की शायद हमें भी था
बात कुछ भी नहीं थी
बातचीत ही तो सिर्फ होती थी
कब दिल का रुख मुड़ गया
जिद्द्पन का पक्षी उड़ गया
हम नहीं जानते
जानते तो बस इतना
की धीरे धीरे
इंतज़ार होने लगा
मौका ढूँढा जाने लगा
और अपनी जिंदगी में
अजीब उलटफेर हो गया
तभी यह असंभव ख्याल आया
की शायद हमें भी था
हर वो गाना
हर वो तराना
जिसे सुनकर हँसते थे
दीवानों की मजबूरी पर
अब, जब खुद उन्ही मजबूरों में थे
तब पता चला
क्या हुआ करती है
उनकी मजबूरी
खुद पर हँसते
खुद से कहते
आखिर तू भी वहीँ गिरा
जहाँ न गिरना था
तू भी वहीँ फिसला
जहाँ खुद को संभालना था
अजीब सी बेहोशी छाई थी
दिलों दिमाग में
कितना भी खुद को रोकें
नहीं रह पा रहे थे
अपने काबू में
खुद पर झुंझलाते
खुद ही को दुत्कारते
लेकिन जहाँ उनके शब्द आते
हम जैसे की सबकुछ भुला देते
अभी भी रट थी
हमें नहीं है
लेकिन अब सोचते हैं
तो याद आता है
की शायद हमें भी था
उनकी एक तारीफ़ को
बरसों के प्यासे की तरह
हम तरसते थे
और वो जो दो शब्द
हमारी तारीफ़ में बोल देतीं
तो ऐसा लगता की जैसे
सालों बाद बारिश हुई हो
किसी बंजर जमीन पर
लेकिन खुदा जाने क्यूँ
उनकी तारीफ़ करते
हमारी रूह कांपती
हम सोचते
न जाने वो
अपने मन में क्या सोचें
अब लगता है
यहीं गलती हुई
जो हमने दिल की बात
दिल में ही रखी
खैर, जो होना था वो हुआ
अब तो
इसी ख्याल से तसल्ली है
की शायद हमें भी था
एक वो दिन था
एक यह आज का दिन है
भूले नहीं भूल पाते
कितना भी कोशिश करें
नहीं निकाल पाते
जब उन्होंने कहा था
वो किसी और की हैं
उनका दिल किसी और का है
जबरदस्त धक्का लगा हमे
सपने में भी
नहीं सोचा था ऐसा
जो अनहोनी थी
वो हो गयी
जो असंभव था
अब संभव है
वो तो कोई और ही था
हम कभी नहीं
जिसके लिए
दिल उनका धड़कता था
जिसके साथ वो जिंदगी चाहती थीं
हम तो बस यूँ ही थे
एक अच्छा दोस्त
एक अच्छा सलाहकार
एक अच्छा इंसान
और न जाने क्या क्या
ऐसे मौके पर
झूठ नहीं बोलेंगे
रोये थे, हाँ रोये थे हम
फूट फूट के रोये थे
भ्रम में पड़े हुए थे
की शायद हमें भी था
अब फिर से
सब पटरी पर है
वही यारों की महफ़िलें
वही दोस्तों की जमातें
वही दीवानों के दुखड़े
बात उनसे आज भी होती है
मन ही मन में आज भी रोते हैं
लेकिन अब दिल शांत है
उपर से अब भी धड़कता है
पर अन्दर बिलकुल शांत है
गर्व है अपने उपर
आज तक किसी को
भनक नहीं पड़ने दी
जो बीती थी हम पर
दोस्तों ने दो एक बार पूछ कर छोड़ दिया
हमने भी हंसी में
अपने दुःख को धूल की तरह उड़ा दिया
जैसे पहले थे
अब भी हैं
कुछ भी नहीं बदला
बदली तो सिर्फ
हमारी सोच
की अब फिर
इस जनम में तो नहीं हो पायेगा हमें
वही जो लगा था
की शायद हमें भी था.....
.