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Thursday, 20 May 2010

HO CHALI SHURUAT


After a long time I wrote this poem in Hindi because I was missing my first language a lot and besides that, I thought it would be best to write these thoughts in Hindi to make it more clear.

हो चली शुरुआत

मिल गए गर सपने जो धूल में
तो क्या छुट गयी आस
अभी न जाने पल हैं कितने
मायने जो रखते ख़ास

उठो रे मानुष अब तुम जागो
निराशा के बंधन को फेंको
सारी कठिनायियो को दे दो मात
अब हो चली शुरुआत

अब हो चली शुरुआत
मुश्किलों को गले लगाने की
अब हो चली शुरुआत
कंटका - कीर्ण  रस्तों पे चलने की

अब इनसे डरना है क्या
अब इनसे छिपना है क्या
पानी है जो मंजिल अपनी
तो फिर इनसे बचना है क्या

सफलता है नहीं नपती
उन्चायियो  से जो तुमने पाई
सफलता उससे है नपती
ठोकरे जो उन तक  तुमने खायी

याद करोगे एक ये भी दिन
जब सारी दुनिया थी अन्धकार में लीन
याद आयेगी तब वो बात
जब हुई थी एक शुरुआत