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Saturday 17 April 2010

ZINDAGI

This one I wrote when one day I came from school and was doing some 'Atma Chintan'.........

ज़िन्दगी

आज स्कूल की छुट्टी के बाद,
घर पर मैं बैठा था अकेला.
सोच रहा था मैं,
क्या मिला मुझे इस ज़िन्दगी से?
वह बुद्धि जो आजतक सर्वोच्च स्थान  की अधिकारिणी न होने पाई?
या वह आंखे जो दूरदृष्टि की साक्षी नहीं?
वह शरीर जो किसी की सहायता में काम  न आई?
या वह मुखमंडल जो कभी दीप्तिमान न होने पाया?
पर फिर मैंने सोचा........नहीं! इतनी तो मुझ पर कृपा हुई,
जो मुझे ज़िन्दगी मिली.
मैं मानसिक रूप से विकलांग नहीं,
न ही मैं अपाहिज हूँ.
मेरे पास ज़िन्दगी तो है, जो मुझे देती है जीने की प्रेरणा.
भले आज समाज में मेरा कोई स्थान न हो,
पर इस प्यारी ज़िन्दगी के साथ कभी तो अपना स्थान बनाऊंगा!
मेरे माता पिता गौरवान्वित होंगे, और मैं देश के काम आऊँगा.
इसलिए हे मेरे मन! तू निराश न हो.
क्योंकि मेरे पास है एक बहुमूल्य तोहफा, जिसका नाम है.......
जिंदगी!

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